कृषि साख
भारतीय कृषकों की वित्तीय आवश्यक्ताओं को तीन प्रकार के ऋणों द्वारा पूरा किया जाता हैं।
1. अल्पकालीन ऋणों के अन्तर्गत खेती-बाड़ी या घरेलू आवश्यक्ताओं की पूर्ति के लिए 15 माह से भी कम समय के लिए धन आवश्यक्ता प्राप्त होती है। बीज, उर्वरक तथा पारिवारिक आवश्क्ताओं के लिए अल्पकालीन ऋण की माँग की जाती है।
2. मध्यकालीन ऋणों के अन्तर्गत भूमि में सुधार करने के लिए, पशु खरीदने के लिए तथा कृषि उपकरश प्राप्त करने क लिए 15 माह से 5 वर्ष तक की अवधि के लिए प्राप्त किए गए ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।
3. दीर्घकालीन ऋणों के अन्तर्गत भूमी खरीदने, भूमी पर स्थायी सुधार कराने, पुराने ऋणों का भुगतान करने तथा महँगे कृषि यन्त्र खरीदने के लिए 5 वर्ष सें अधिक समयावधि के ऋणों को सम्मिलित किया जाता है।
भारत में किसान अपनी उपरोक्त आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु दो प्रकार के स्त्रोत सें ऋण प्राप्त करता है (1) गैर-संस्थागत स्त्रोत तथा (2) संस्थागत स्त्रोत। गैर संस्थागत स्त्रोतों (Non-institutional Sources) में साहूकार, व्यापार एवं भू-स्वामी आदि को सम्मिलित किया जाता है। स्त्रोतों (Institutional Sources) में सरकार , सहाकारी समितियों तथा वाणिज्यिक बैंकों आदि को सम्मिलित किया जाता है।
कृषि के क्रेडिट प्रवाह में वृद्धि करने की आवश्यकता होती है। पुनश्च यह विधि अधिक ऊँची-नीची मृदाओं के लिए अनुपयुक्त होती है।
छिड़काव सिंचाई
इस विधि के द्वारा हवा में फव्वारे के रुप में पानी का छिड़काव किया जाता है जो मृदा की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रुप में पहुँचता है। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे की जाती है जिससे कही पर पानी जमा न होने पाये। इस विधि की रुपरेखा में पम्प, मोटर, मुख्य रेखा और फव्वारा निकाय आदि प्रमुख होते हैं।
यह एक प्रचलित विधि है जिसके द्वारा पानी की लगभग 30 सें 70% तक बचत होती है। यह विधि रेतीली मृदा, ऊँची-नीची जमीन और जहाँ पर पानी की उपलब्धता कम है, वहाँ पर उपयोग की जा सकती है। इस विधि के द्वारा कपास, मूँगफली, तम्बाकू तथा पुष्प आदि फसलो में सिंचाई की जाती है। इस तकनीक के प्रयोग के समय सिंचाई करते समय वायु तेज नहीं होनी चाहिए। पके फलों को फव्वारे सें बचाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि सिंचाई की इस विधि में कवकनाशी, कीटनाशी तथा उर्वरकों का प्रयोग सुगमता सें किया जा सकता है।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना
किसान क्रेडिच कार्ड योजना वर्ष 1998-99 में वाणिज्यिक बैकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैकों तथा सहकारी बैकों से देय ऋण को सुसाध्य बनाने के लिए शुरु की गई थी। इस यौजना की मुख्य विशेषाएँ निम्नलिखित हैं
1. रु 5000 अथवा उससे अधिक के उत्पादन ऋण के लिए पात्र किसान, किसान क्रेडिट कार्ड प्राप्त करने के हकदार है। यह कार्ड किसानों को उनकी भूमी के आधार पर जारी किए जातें है।
2. पात्र किसानों को किसान कार्ड और पास बुक अथवा कार्ड सह-पास बुक उपलब्ध कराई जाती है।
3. इनका उपयोग किसान खेती के लिए बीज, उर्वरक और कीटनाशक आदि जरुरतों की वस्तुओं को खरीदने के लिए करते है।
4. प्रचालनात्मक जोत, फसल पैटर्न और वित्त श्रेणी के आधार पर सीमा निर्धारित की जाती है।
5. बैकों के विवेक पर उप-सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं।
6. प्रत्येक आहरण का भुगतान 12 महीनें में करना होता है।
7. प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसलो के मामले में ऋण को बदलता/पुनर्निर्माण की भी अनुमति है।
8. लागत वृद्धि तथा फसल पैटर्न आदि में परिवर्तन होने पर ऋण की सीमा को बढ़या जा सकता है।
वर्तामान इस योजना का कार्यन्वयन वाणिज्यिक बैंको, केन्द्रीय सहकारी बैंको और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको के माध्यम सें किया जा रहा है।
इसके तहत दुर्घटना सें मृत्यु होने पर रु 50000 तथा स्थायी रुप से अयोग्य होने पर रु 25000 तक की राशि दी जा सकती है। इस बीमे की प्रीमियम राशि का भुगतान कार्ड निर्गत करने वाली संस्थाओं को करना होता है।
मूल्य स्थिरीकरण कोष
चाय, कॉफी, रबर व तम्बाकू के मूल्यो मे उतार-चढ़ाव को नियन्त्रित करने के उद्देश्य सें मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना 20 फरवरी 2003 को की गई थी। चार हेक्टेयर तक की जोतों के धारक इस य़ोजना का लाभ उठा सकेंगे । इसके चलते लगभग 3.42 लाख उत्पादकों के इससे लाभवन्तित होने का अनुमान था।
मूल्य स्थिरीकरण की इस अनूठी योजना के तहत प्रस्तावित कोष में सरकार द्वारा तथा उत्पादको किया जाने वाला योगदान अलग-अलग होता है। मूल्य स्थिरीकरण के लिए बैंचमार्क मूल्य का निर्धारण विगत सात वर्षो के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य के चल माध्य के द्वारा निर्धारित किया जाता है। बाजार मूल्य के इससे 20% अधिक या कम होने पर कोई कदम नहीं उठाया जाता है, किन्तु मूल्य में 20% से भी अधिक कमी आने की स्थिति में उत्पादकों को राहत इस कोष से प्रदान की जाती है। इसी प्रकार बाजार मूल्य के बैंचमार्क मूल्य के 20% से भी अधिक होने पर उत्पादकों को अतिरिक्त राशि कोष में जमा करनी होती है।
कृषि जीन बैंक
भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने देश में कृषि पदार्थो के डी.एन.ए फिंगर प्रिन्ट का केन्द्र स्थापित किया है। इसके माध्यम से किसी भी कृषि पदार्थो की जीन स्तर पर प्रामाणिक पहचान की जाती है। इस सुविधा के बाद न केवल देश के सर्वश्रेष्ठ कृषि पदार्थों की जीन संरचना का रिकार्ड रखना सम्भव होगा, बल्कि नए शोध के फलस्वरुप विकसित नए कृषि पदार्थों को पेटेन्ट कराने में भी सहायता प्राप्त होती है। नए एंव पुराने कृषि पदार्थों को पेटेन्ट कराना नवीन विश्व पेटेन्ट व्यवस्था के तहत आवश्यक भी है, नहीं तो उसका लाभ अधिक उन्नत तकनीक रखने वाले देश ही उठा ले जाएगे। वर्ष 1988 में स्थापित भारत का कृषि जीन बैंक विश्व के कुछ सर्वोतम बैंको में सें एक हैं।
टर्मिनेटर बीज तथा ट्रेटर प्रौद्योगिकी
टर्मिनेटर (Terminator) बीजो के पश्चात बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियों ने अब ट्रेटर (Traitor) प्रौद्यीगीकी के जरिए कृषि जगत में तहलका मचाने की तैयारी कर ली है। टर्मिनेटर बीजो की प्रमुख विशेषता यह है कि उन्हे केवल एक बार ही फसल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। फसल लेने के पश्चात अगली फसल के लिए किसानों को पुनः निया बीज कम्पनियो से ही खरीदना पड़ेगा। टर्मिनेटर बीजों के प्रति राष्ट्रवव्यापी विरोध के चलते भारत सरकार ने ऐसे बीजों के भारत में आयात की अनुमति नहीं दी है।विवादित टर्मिनेटर बीजों के पश्चात बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियाँ आजकल मनचाहे गुणों वाले ट्रेटर बीजों को पेटेन्ट कराने में लगी हैं। ओटावा (कनाडा) स्थित रुरल एडवांसमेंट फाउण्डेशन इन्टरनेशनल (RAF) ने आरोप लगाया है कि ट्रेटर प्रौद्योगिकी के बल पर बीज का उत्पादन होता है।
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